रविवार, 31 अगस्त 2014


आठवनी
अलगत तु हसुन जवळ यावे
हळुच कानात हितगुज करून
म्हणावे काय करतेस....
     
     अन मी त्या शब्दानी मोहरूण जावे
     अन हळुच म्हणावे....  

                   आठवण त्या क्षणाची             
                   ज्यावेळेस तुझे शब्द
                   माझ्या मनास भिड़त जाऊन
                   मनाला मोहरूण टाकायचे....


ती प्रेमाची पहिली अनुभूती..
ती पहिली आतुरता..
तो हवा हवा सा वाटनारा स्पर्श..
मनाची घालवेल..
ती ओढ़..बघण्याची, भेटण्याची..
तो गोड सहवास....
   
  प्रेम..सुरू होत..कधीही न संपण्यासाठी
  फक्त विरह हा त्रासदायक असतो
  बाकी सर्व सुखद....!!!!                      

6 टिप्‍पणियां:

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  2. जे जोडले ते "नाते"
    जी जड़ते ती "सवय"
    जी थांबते ती "ओढ़"
    तर जे वाढते ते "प्रेम"
    जो संपतो तो "सहवास"
    आणि निरंतर राहतात त्या फक्त "आठवणी"

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    1. कविजी आपकी पहेली सुलझाना कठिन है....कृपया सरल भाषा का प्रयोग करे..!!

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  3. सरल तो कुछ भी नहीं होता.... ना जिंदगी ....ना रास्ता..... तो फिर पहेली कैसे सरल हो सकती है.... उलझनों को सुलझाना ही तो आपका हमारा हम सब का काम होता है ।

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